Sunday, April 10, 2011

Stop Female Foeticide.....

Rightly said..
           "What sunshine is to a flower
                   a girl is to humanity ..........."
But the statement is disregarded after we find that 1/2 million female foetuses are killed each year in India .Female foeticide means aborting a healthy foetus of about 18 weeks of gestation period just because of the reason that the foetus is a female.If it is a male then the condition would not have been the same as our Indian society thinks that it is "only the son that is a social security in old age".
Despite the fact that determination of sex in the pre-natal stage is a penal offence yet it is widely practised by both parents as well as doctors. The scientific techniques of sonography ,amniocentesis,ultrasound are used to do this thus prooving themselves as a terminator.
How could we think of a society without feamles?I want to ask what is the crime done by those innocent foetuses who are killed even before opening their eyes to see this world?They are not given any sort of oppourtunity any warning to proove themselves.In the words of female foetus "I have crossed my fingers,may be I get a chance to come out alive".

Wednesday, March 30, 2011

एक चोरी करने की ख्वाहिश


मेरे नए नोकिया के फ़ोन में एक SMS आया था ,एक साधारण सा प्रश्न ,आपमें से बहुत से लोगों ने शायद सुना भी होगा,क्या चुरायेंगे आप इस दुनिया से यदि आप कुछ समय के लिए अदृश्य हो जाये?एक बार तो  इस विचित्र से प्रश्न ने मुझे वास्तविकता से परे स्वप्नों के महल में पंहुचा दिया परन्तु  दूसरे ही क्षण मुझे आभास हुआ कि -क्या सचमुच ये  दुनिया इतनी खूबसूरत है?
मुझे स्मरण हो उठा उन लोगों का जिनके पास रहने के लिए एक छत का आश्रय भी नहीं है , जिनकी भूख रात्री के अंधियारे में स्वंयं ही विलुप्त  हो जाती है ,जो अपनी  तमाम जिंदगी प्लेटफॉर्म पर ही गुज़ार लेते हैं या अपनी ही रेड्डी को मखमल का बिस्तर समझकर उसपर सो जाते हैं ,जो सर्दी के मौसम में जान भूजकर चोरी करते हैं ताकि वे जेल जा सकें और अपने शरीर को वहां कि दो वक्त कि रोटी और उस काल कोठरी में रहकर ठण्ड का सामना कर सकें | साथ ही मुझे स्मरण हो उठा उन मासूमों का जिन्होंने अपनी आँखें ममता के अंचल में भरी उस गरीबी में खोली जहाँ सिर्फ अँधियारा ही शेष था |उनका क्या जिन्होंने अपने बचपन के सुनहरे पल ट्रेफिक सिग्नल पर जमा हुई कारों कि भीड़ के शीशे साफ़ करने में ही लगा दिए ,या चिल चिलाती धुप में दर दर इधर से उधर भटककर अगर्बतियाँ बेचने में ही लगा दिए ,जो पौ फटते ही पूरे शहर के फेकें हुए गंद में कुछ रद्दी ढूँढने निकल पड़ते हैं इसी आस में कि शायद आज उन्हें गीला कपडा बंधकर अपने पेट को नहीं समझाना पड़ेगा ,जो शहर के बाहर  प्लास्टिक कि थैलियों  के टीलों के बीच अपना रहने का स्थान ढूँढ़ते हैं जहाँ हमारे जैसा व्यक्ति अपने आप को दुर्गन्ध से बचने कि लिए रुमाल कि सहायता लेता है ,जो दिन रात ढाबों पर चाय के कप धो कर अपना गुज़र निवेश करते हैं,जो बड़े बड़े स्कूलों को दूर से ही देखकर संतुष्ट हो जाते हैं , जो छुट्टी के दिन घरों का कूड़ा करकट उठाने में अपने माँ बाप के सहायता करते हैं , जो ट्रेन में दूसरों का मनोरंजन करके यह फिर अपने भाई बहिन कि दुर्दशा पर हमसे मदद की पुकार मंग्तें हैं और अनेकों बार मार पिटाई यह फिर गाली गलोच का शिकार भी बन जाते हैं ????????
इन लोगों के आँखों में अब आसूं भी बनने बंद हो गये .
 बस बस बस !यह सब सोचकर मेरा मन प्रकम्पित हो उठता है .मुझे कुछ नहीं चाहिए ,में अपने जीवन से संतुष्ट हूँ .
गरीबी मनुष्य के साथ बहुत ही बड़ा खिलवाड़ कर रही है ,उसका जीवन दूभर  बना रही है .मनुष्य को कुछ भी करने के लिए मजबूर कर रही है .हर किसी को सुख चैन से जीने का जनम सिद्ध अधिकार  है ,तो फिर यह गरीबी हमें क्यूँ अलग कर रही है ? क्यूँ हमें कुछ भी करने के लिए विवश कर  रही है ?
ना  होती यह बूख ,ना होती यह गरीबी और ना ही होती यह लाचारी यह बूख मारी .हाँ अगर मुझे अवसर मिले इस दुनिया से कुछ चोरी करने का तो संपूर्णतः में यहाँ से गरीबी की चूरी करुँगी और उसे अन्तरिक्ष के black hole में फ़ेंक आउंगी जहाँ से यह कभी वापस ना सके ..